तारो के तेज मे चँद्र छीपे नही,सुरज छीपे नही बादल छायो,
रणे चडो रजपुत छीपे नही, दाता छीपे नही घर माँगन आयो,
चँछल नारी के नैन छीपे नही,प्रीत छीपे नही पीठ दिखायो,
कवि गँग कहे सुन शाह अकबर कर्म छीपे नही भभूत लगायो.
रणे चडो रजपुत छीपे नही, दाता छीपे नही घर माँगन आयो,
चँछल नारी के नैन छीपे नही,प्रीत छीपे नही पीठ दिखायो,
कवि गँग कहे सुन शाह अकबर कर्म छीपे नही भभूत लगायो.
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